एक दिशा में जाना था,
पथअदृश्य विलुप्त अंजाना सा ,
मन में शंका अनेक विह्वलता,
कौन उसे सुलझाना था ।
एक हाथ बढा तब स्कंध तक,
उस दीप्ति के समक्ष तब ,
मस्तक झुका उसी क्रम में,
अस्त ज्ञान चक्षु का खुल जाना था,
समक्ष परिपथ अब पहचाना था,
जीवन उज्जवल, मन हर्षल,
मेरे गुरु का जीवन में आ जाना था।
ऋतु रत्न
गौतम बुध नगर
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ऋतु रत्न
गौतम बुध नगर