‘नोएडा, ग्रेटर नोएडा की रियल एस्टेट परियोजनाओं में बड़ी धोखाधड़ी हुई है। कोर्ट किसी को नहीं छोड़ेगा। एक-एक पाई वसूल लेगा और दोषियों का पता लगाकर दंडित किया जाएगा।’ सुनवाई के दौरान मंगलवार को देश के नामी बिल्डर आम्रपाली के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी नाहक नहीं है। दरअसल, आम्रपाली ग्रुप अपने ज्यादातर निवेशकों से फ्लैट की 80 से 90 फीसदी रकम वसूल चुका है। आलम यह है कि कई प्रोजेक्ट में निवेशक 100 फीसद तक पैसा तक दे चुके हैं, लेकिन 7 साल बीत जाने के बाद भी ग्रुप का कोई प्रोजेक्ट तैयार नहीं है। आम्रपाली बिल्डर्स पर नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के साथ-साथ दर्जनभर बैंकों का भी काफी पैसा बकाया है, जिसे वह देने के स्थिति में नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक, 40 हजार से भी ज्यादा निवेशक आम्रपाली के धोखे का शिकार हैं और पीड़ितों के पास सुप्रीम कोर्ट के अलावा किसी से आस नहीं है।
हालात किस कदर बदतर हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आम्रपाली की ओर से परियोजनाओं को पूरा करने की योजना की दलील दिए जाने पर कोर्ट ने कहा कि आप लोग भरोसे लायक नहीं हैं। 2011-12 की परियोजना है और अब 2018 चल रहा है, लेकिन घर अभी तक नहीं मिला। गड़बड़ी का गणित यह कहता है कि अगर 40 हजार निवेशकों ने औसत 30 लाख रुपये का फ्लैट खरीदा है कि कुल मिलाकर बिल्डर ने 12000 करोड़ रुपये निवेशकों से लिए हैं। निवेशकों को झांसे में लेता रहा आम्रपाली जानकारों की मानें तो आम्रपाली बिल्डर ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत लोगों से अपने आवासीय प्रोजेक्ट में पैसे लगवाए। इसके लिए उसने कई तरह के प्लान भी बनाए, जिसके झांसे में निवेशक आते रहे। बताया जाता है कि आम्रपाली बिल्डर ने खरीदारों को झांसे में लेने के लिए पूरी योजना के साथ फ्लैक्सी प्लान बनाया। इसके तहत बिल्डर ने हाईराइज इमारत में ज्यादातर मंजिल का निर्माण होने पर 95 फीसद पेमेंट की शर्त रखी, फिर बैंकों ने इसी आधार पर लोन भी हुए। हैरानी की बात है कि बिल्डर ने साजिश के तहत 18 मंजिला इमारतों को 22 मंजिल तक बनाने का फैसला लिया, लेकिन फ्लैक्सी प्लान में बदलाव नहीं किया। नियम के अनुसार मंजिल बढ़ने पर प्लान में भी बदलाव होना चाहिए था।
बिल्डर काम ठप करके भी पैसा लेता रहा निवेशकों से जानकारों की मानें तो बिल्डर ने सभी प्रोजेक्ट को एकसाथ शुरू करने का लालच देकर बुकिंग जारी रखी। वहीं, फ्लैटों की बुकिंग में तेजी आई, लेकिन काम ठप पड़ गया। इसके साथ ही निवेशकों से जिस प्रोजेक्ट के लिए पैसे लिए गए, उन पैसों को दूसरे प्रोजेक्ट में लगाया। हैरानी की बात है कि बिल्डर ने नियम-कानून को ठेंगे पर रखकर बिल्डर प्रोजेक्ट का पैसा दूसरी बिजनेस वाली अपनी कंपनियों में लगा दिया गया। जब आर्थिक मंदी के दौर में बुकिंग घटी तो एकसाथ सभी प्रोजेक्ट में काम ठप पड़ गया और बिल्डर ने चालाकी से दिवालिया होने की तरफ खुद चल पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट ने के अधूरे पड़े प्रोजेक्टों को पूरा करने की जिम्मेदारी नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (एनबीसीसी) को सौंप दी है। हालांकि प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए एनबीसीसी खुद कोई खर्चा नहीं करेगा। सुनवाई के दौरान एनबीसीसी की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि के अधूरे प्रोजेक्टों को पूरा करने के लिए लगभग 8500 करोड़ रुपये खर्च होंगे। एनबीसीसी के इस बयान से के निवेशकों को बड़ी निराशा हुई है। उन्होंने सरकार की ओर निहारना शुरू कर दिया है। निवेशकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह के सभी निदेशकों के बैंक खातों का फोरेंसिक ऑडिट कराना चाहता है। इसके बाद माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट जल्द ही खातों के फोरेंसिक ऑडिट का आदेश भी दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने बैंक ऑफ बड़ौदा से ऑडिटर का नाम देने को भी कहा है। अगली सुनवाई में खातों की फोरेंसिक जांच पर निर्णय लिया जा सकता है। ऐसे में निवेशकों के सामने केवल इंतजार करने के अलावा कोई भी चारा नहीं रह गया है।